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कुंभ में क्या होता है किन्नर अखाड़े की मुखिया के टेंट में कैमरा ऑन होने से पहले? kinnar @ kumbh mela


चिल्लर हैं किसी के पास?
गद्दी पर बैठीं ‘मां’ नीचे दरी पर बैठे लोगों से पूछती हैं. उनके बगल में स्टील की थाली रखी है. अक्षत और एक रुपये का सिक्का, आम तौर पर खुद से मिलने आए भक्तों को वो यही प्रसाद देती हैं. सिक्के खत्म हो गए हैं. पिछले एक घंटे में दूसरी बार ‘मां’ ने चिल्लर मांगा है. लोगों के बैग खुल गए हैं. अब अपने-अपने पास सिक्के टटोल रहे हैं.
कैमरा ऑन होने से पहले अलग कैसी होती हैं लक्ष्मी?ये किन्नर अखाड़ा है. हम जिस टेंट में बैठे हैं, वो है आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का. किन्नर अखाड़े की मुखिया. हम उनको उनके ऐक्टिविस्ट वाले दौर से जानते हैं. वो तब LGBTQ अधिकारों पर काम करती थीं. सेक्शन 377 खत्म करने के संघर्ष से जुड़ी थीं. वो लक्ष्मी भी खुशमिजाज दिखती थीं. खूब सारे रंग पहनती थीं. मगर इस लक्ष्मी से बहुत अलग थीं. अब वो धर्म की गद्दी पर बैठी हैं. धर्म की ज्यादा बातें करती हैं. मिलने पर ‘जय महाकाल’ कहती हैं. मगर कैमरा ऑन होने से पहले, अपने लोगों अपने भक्तों के बीच, वो जिस अंदाज़ में होती हैं, वो थोड़ा हटके है.
इंटरव्यू के लिए शाम 5 बजे का वक़्त मिला था हमें. मगर 5 बजे पांच बजा नहीं. लक्ष्मी व्यस्त थीं. पहले बताया, मुरारी बापू के पास जा रही हैं. लौटकर आईं, तो भक्तों में रम गईं. इंटरव्यू याद दिलाया, तो अंदर टेंट में ही बुला लिया. हम बैठे हैं. जाने कब आएगी साइत इंटरव्यू की. हम इंतज़ार कर रहे हैं. जो-जो हो रहा है, देख रहे हैं.
लक्ष्मी के पास लगातार फोन आ रहे हैं. वो क्या बात कर रही हैं, किससे बात कर रही हैं, इसे छुपाने की कोशिश नहीं करतीं. सब उनकी बातें सुनते हैं. कई बार हंसते भी हैं (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
वो माहौल, उस माहौल की चीजेंसामने गद्दी है. पूरब की तरफ मुंह करके बैठी हैं लक्ष्मी. गुलाबी, पीच रंग की मिली-जुली सिल्क साड़ी. कोहनी तक की गुलाबी चोली. माथे पर बड़ा सा तीन लकीरों वाला गेरुआ-सुनहरा तिलक. उसके ऊपर लाल रंग की खूब बड़ी टिकुली. गले में सोने की चेन. और रुद्राक्ष की मालाएं. मोटे-छोटे, कई साइज के रुद्राक्ष हैं. एक में नीचे सोने के महादेव लटक रहे हैं. गद्दी पर कंबल बिछा है. उसके ऊपर मिले-जुले रंग का आसन. दो कुशन, चार मसनद. पीछे दुर्गा का बड़ा सा मुखौटा. उसके नीचे दो मालाएं. दाहिने हाथ की तरफ पीतल का एक त्रिशूल रखा है. त्रिशूल पर एक नाग बना है, चौड़े फैले फन वाला. नाग के नीचे एक जोड़ा डमरू हैं. गद्दी के बाईं ओर अर्धनारीश्वर की मूर्ति. उसके पास दान पेटी. दान पेटी के बगल में टेबल. उस पर कई किस्म के फल- संतरा, अमरूद, केला, अंगूर भी है.
‘बारिश से उमस हो गई न, परदा उठा दो थोड़ा’लक्ष्मी के दाहिने हाथ की तरफ गद्दी पर तीन फोन रखे हैं. दो आई फोन, एक बेसिक फोन. एक फोन लगातार पावर बैंक से चार्ज हो रहा है. भूरे रंग का एक लेडीज़ हैंडबैग भी है. नीचे दरी बिछी है. लोग बैठे हैं. औरत, मर्द, लड़के, लड़कियां, बच्चे सब. गद्दी के पीछे टेंट का इनडोर दरवाज़ा. वो लक्ष्मी का पर्सनल हिस्सा है. मुझे अपनी जगह से बैठे हुए वहां रखी काली लकड़ी का पलंग दिख रहा है. उसके पास कोई सोफा भी है शायद. सोफे से दो बित्ते की दूरी पर एक मेज है. उस पर रखा वो डब्बा पचरंगा अचार के जैसा मालूम होता है. ये चार मुंह वाला टेंट है. एक मेन, जिससे मिलने वाले आते हैं. एक से लोग मिलकर जाते हैं. एक तो बताया ही, जो पर्सनल स्पेस को ले जाता है. और चौथा, मेरे ठीक पीछे. उसका पर्दा तब उठता है, जब लक्ष्मी को गर्मी लगती है. जब वो कहती हैं-
बारिश से उमस हो गई न, बहुत घुटन हो रही है. परदा उठा दो, थोड़ी ठंडी हवा आएगी.
मां, पानी पी लो…लक्ष्मी ने कोई स्वेटर नहीं पहना. शॉल तक नहीं बदन पर. उनको गर्मी लग रही है. परदा उठा. गीली हवा भर गई अंदर. मुझे जैकेट पहनने के बावजूद ठंड लग रही है. लक्ष्मी का असिस्टेंट, शायद धर्मेश इसी का नाम है. वो मुस्तैद खड़ा है गद्दी के बगल में. लक्ष्मी उबासी लेती हैं. असिस्टेंट ने लपककर चांदी का ग्लास उठाया- मां, पानी. लक्ष्मी दो घूंट पानी पीती हैं. लोग एक-एक करके बारी का इंतज़ार कर रहे हैं. बारी आने पर वो लक्ष्मी के पास जाएंगे. पैरों पर लोट जाएंगे. लक्ष्मी उनको एक रुपये का सिक्का और चावल के कुछ दाने देंगी. इन्हें घर में पूजा की जगह पर रख देना है. पाने वाला सोचता है, इससे सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी. जाने से पहले भक्त लक्ष्मी के साथ सेल्फी लेंगे. लक्ष्मी खुद ही फोन पकड़कर क्लिक करेंगी फोटो. पोज़ देते हुए. किस ऐंगल से अच्छी फोटो आ रही है, ये ध्यान रखते हुए. फोटो खींचते वक़्त वो मुस्कुरा रही होंगी.
अमूमन सारे ही लोग लक्ष्मी के साथ सेल्फी लेते हैं. लक्ष्मी खुद ही क्लिक करती हैं ये तस्वीरें (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
सेल्फी का चार्म, गुरु को भी और भक्त को भीशुरू-शुरू में लक्ष्मी थकी नज़र आती हैं. लोग आ रहे हैं, पांव छूकर जा रहे हैं. कुछ पास रखी स्टील की थाली में दक्षिणा भी रख रहे हैं. 100 के नोट ज्यादा हैं. 50 और 500 भी हैं. 10-20 रुपये के भी नोट नज़र आते हैं. जिसका जैसा सामर्थ्य. लक्ष्मी ज्यादा ध्यान नहीं दे रहीं. उन तक संदेशा पहुंचता है, कोई आया है मिलने जिसको ट्रेन पकड़नी है. लक्ष्मी जोर से पूछती हैं, किसको पकड़नी है ट्रेन. एक बूढ़ी अम्मा आगे बढ़ती हैं. लक्ष्मी के पांव छूती हैं. वो फिर धीरे-धीरे लक्ष्मी से कुछ कहती हैं. शायद वो वजह, जो उन्हें यहां तक खींच लाई है. कोई उम्मीद, कोई मुराद, कोई तकलीफ. लक्ष्मी गद्दी से उठकर अम्मा को गले लगाती हैं. फिर बायें हाथ पर रखी मेज से एक केला उठाकर देती हैं- रात को खिला देना. फिर सेल्फी, क्लिक-क्लिक.
‘प्यार करते हैं, घरवाले नहीं मान रहे’मेरे आगे एक लड़का-लड़की बैठे हैं. मैं नाम पूछती हूं. वो बताते हैं. मैं यहां नहीं बताऊंगी. उनके कुशल-मंगल के वास्ते. दोनों की जैकेट का रंग भूरा. मैं पूछती हूं, क्यों आए हो. जवाब मिलता है, आशीर्वाद लेने. लड़का ब्राह्मण है, लड़की ठाकुरों की बेटी. प्यार करते हैं, मगर घरवाले राज़ी नहीं. दोनों लक्ष्मी से मिलने आए हैं. आस लिए कि शायद इस रास्ते प्यार हासिल हो जाए. उनकी बारी आ गई है. दोनों लक्ष्मी के पैरों पर सिर रखे एक मिनट ठहरते हैं.
लड़की धीमे-धीमे कुछ कह रही है लक्ष्मी से. ओह, रो रही है. लक्ष्मी उसको सीने से लगाती हैं. फिर असिस्टेंट से कहती हैं- Can I have wet tissue papers. अब वो लड़की के आंसू पोंछ रही हैं. कह रही हैं- Look at me, such beautiful eyes you have. लड़की अब चुप हो गई है. उन दोनों को कल दोपहर एक बजे बुलाया है लक्ष्मी ने. दोनों जा रहे हैं. लक्ष्मी वो टिशू पेपर लड़की को लौटाती हैं- This is your tissue, keep it with you. मैं देखती हूं, टिशू पर एक कोने में काजल लगा है. उस लड़की का काजल. अब वो ये टिशू संभालकर रखेगी, गुड लक के वास्ते. दोनों जा रहे हैं. लक्ष्मी लड़के से कह रही हैं- Take care of her.
‘बस बहन लोग को आना है, भाई लोग को नहीं’अभी लक्ष्मी अंदर गईं. वो थक गई हैं. कुछ मिनट बाद लौटेंगी. असिस्टेंट बाहर आया. लक्ष्मी का भूरा बैग उठाकर वो भी अंदर गया. बाहर एक महिला एक किनारे बैठी औरतों के पास आई. उसने पैगाम दिया-
2 फरवरी, बहन लोग को आना है. प्रोग्राम है, शाम 5 बजे से. बस बहन लोग को आना है, भाई लोग को नहीं. 21 ऐसी औरतें जिनके बच्चे नहीं हो रहे, उनकी गोद भरी जाएगी.
ये कहकर वो औरत चली जाती है. मैं वहां बैठी औरतों से बात कर रही हूं. गुलाबी साड़ी में बैठी इस औरत के बच्चा नहीं हो रहा. शादी के चार बरस बीत गए. मैंने पूछा, यहां क्यों. वो कहती है, इनकी दुआ बहुत लगती है न.
लक्ष्मी एक मिनट को भी ध्यान नहीं भटकने देतीं. वो किसी से भी बात करें, सबकी नज़रें उन पर ही रहती हैं (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
दुआएं तो कब से दे रहे हैं किन्नर, क्या अब इज्जत पा सकेंगे?ये सवाल बहुत देर से चल रहा है मेरे मन में. लोग मानते हैं कि किन्नरों की दुआ असर करती है. उनकी बद्दुआ से डरते हैं लोग. मैं यहां आने वालों को देखकर यही सोच रही हूं. ये कुछ चाह पाने की हसरत में आए लोग हैं. शायद और कई दरवाजों से खाली हाथ लौटे हों. यहां बड़ी उम्मीद से आए हैं. उस डॉक्टर की दवा नहीं लगी, शायद इसकी लग जाए. यही मेरी चिंता भी है. लोग तो जाने कब से किन्नरों का आशीर्वाद ले रहे हैं. तब भी किन्नरों को इज़्ज़त नसीब नहीं हुई. तब भी वो दुरदुराये जाते हैं. क्या यहां आने वाले लोग दुआ और आशीर्वाद से परे किन्नरों को बराबर का समझेंगे?
ऑफिस वालों की बारी आईलक्ष्मी साड़ी ठीक करती वापस लौट आई हैं. फिर वही. भक्त, सेल्फी, प्रसाद. मेरी नज़र अक्षत-सिक्के वाली थाली के पास रखे दूसरे प्लेट पर जाती है. उसमें रुद्राक्ष हैं. लिपस्टिक भी हैं. वो भी प्रसाद है. खास लोगों को दिया जाता है. लक्ष्मी असिस्टेंट से कहती हैं-
ऑफिस वालों को बुला लो अब.
ऑफिस वाले? मुझे समझ नहीं आता. असिस्टेंट गेट पर खड़ा है. कह रहा है- दूरदर्शन वाले कहां हैं, आ जाइये. हम खीझ जाते हैं. हमें बैठा रखा है. और यहां दूरदर्शन वालों को इंटरव्यू देंगी. हम खीझकर सवाल करते हैं. असिस्टेंट बताता है. नहीं वो इंटरव्यू के लिए नहीं आए, मिलने आए हैं. ओह, तो ये है ‘ऑफिस वाले’ का मतलब. भक्तों का एक खास तबका. ऊंचे ओहदे वाले अधिकारी.
लोग सारी झिझक, सारा ईगो किनारे रखकर आते हैं. रोते हैं. कोई पर्सनल कोना तो होता नहीं. जो होता है, कइयों के सामने होता है. फिर ये भी है कि बाकी सब भी तो कुछ न कुछ मन में लेकर ही आए हैं यहां (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
अंदाज़ में कितनी वैरायटी हैदूरदर्शन के लोगों में से एक लक्ष्मी के सीने से लगकर रो रहा है. लक्ष्मी चुप नहीं कराती, रोने देती हैं. मुट्ठी से पीठ सहलाती हैं. उनके हाथ में किस्म-किस्म की चूड़ियां. सोने की, सोने की पट्टी वाला शंखा-पोला, लाख वाली लहठी. दोनों कलाइयों में टैटू. बायें हाथ में एक लड़की बनी है, माथे पर बड़ी सी बिंदी है उसके. क्या ये लक्ष्मी खुद हैं? शायद. लक्ष्मी ने उस दूरदर्शन के अधिकारी को मेज से फल उठाकर दिया. मंदिर में रखना घर के, सब ठीक हो जाएगा. वो दक्षिणा रखते हैं. लक्ष्मी कह रही हैं- इसकी क्या ज़रूरत है, मेरे लिए तुम्हारा प्रेम मायने रखता है. कहती हैं, पर दक्षिणा रखने से रोकती नहीं. बातचीत चल रही है. कभी पास बैठे भक्त से, कभी इंतज़ार कर रहे भक्तों से. लक्ष्मी सबको इंगेज रखती हैं. इंतज़ार कर रहे भक्तों को अधीर नहीं होने देतीं-
– कहां से आए हो? मुरारी बापू, केम छो? 
– फोटो अच्छी नहीं आएगी, स्माइल करो चलो. 
– कहां जैबू है बहिनिया, काहे
– Let me first finish with the kids. They have been waiting for long.
– मैं आ जाऊंगी रे घर पर, बहुत मारूंगी
– Hi darling, एक फ्लाइंग किस तो दे जा, तू गर्लफ्रेंड को ही देना.
एक भक्त संतरे लाया है. मैं आंखों से तौलती हूं, पांच किलो होंगे. ज़्यादा भी हो सकते हैं. बाहर बारिश हो रही है. मेरा चश्मा पसीज रहा है. साफ कैसे करूं? चश्मे का कपड़ा? वो तो कार में रह गया.
‘बिजनस ठीक नहीं चल रहा, ये आशीर्वाद दें तो सही हो जाएगा’मेरे बगल में एक आदमी बैठा है. विपिन. यहीं इलाहाबाद का. ठेकेदारी करता है. काम अच्छा नहीं चल रहा. इसलिए आया है. मेरे पीछे की तरफ बेंच है. तलवारें रखी हैं उस पर. मैं बड़ी देर से घुटने मोड़कर बैठी हूं. पैर सो गया है. पीठ क्यों दुख रही है इतनी? मैं साइड बदलती हूं. पीछे रखी एक ब्लैक ऐंड वाइट तस्वीर दिखती है. पेंसिल स्केच है. बनाने वाले का नाम लिखा है. मैं पढ़ने की कोशिश करती हूं, सिद्धार्थ लिखा है शायद. एक जवान लड़का, काली दाढ़ी, मोटे फ्रेम का चश्मा, भर मुंह मुस्कुरा रहा है. ये सिद्धार्थ ने खुद को बनाया होगा. उसके सिर पर लक्ष्मी का हाथ है, आशीर्वाद की मुद्रा में. लक्ष्मी तस्वीर में बिल्कुल शांत हैं. जैसी अमूनन असल में नहीं रहतीं.
बार-बार खत्म हो रहे हैं सिक्केचिल्लर फिर खत्म हो गए. चिल्लरों को गिनकर आप दर्शन के लिए आए भक्तों की गिनती कर सकते हैं. असिस्टेंट बाहर से दो मुट्ठी सिक्के लाया है. लक्ष्मी बच्चों को चूम रही हैं. इनमें वो बच्चा भी है, जो तब से अपनी मां की डांट खा रहा था. मां की आवाज़ में बिहार की तेज़ गंध थी. सीधे बैठो, हाथ जोड़ो. बच्चा डांट खाते वक़्त दुखी था. अब खुश है. ये बच्चा शायद हमेशा याद रखे कि उस रात मुझे लक्ष्मी मां ने दुलारा था.
दो जवान लड़के हैं. मैं पूछती हूं. कहां से आए? गुजरात से. हम मुरारी बापू के भक्त. इनको कैसे जानते हो? एक साल पहले बापू ने किन्नर कथा की थी. तब ये आईं थीं. उस समय से हम पहचानते हैं.
लक्ष्मी के कई भक्त मुरारी बापू के भक्त हैं. वहां से यहां आए काफी लोग मिले हमको. लक्ष्मी कहती हैं, मुरारी बापू मेरे पिता जैसे हैं. गुजरात पीहर है मेरा. वहां से आए लोगों के साथ गुजराती में ही बोलती हैं वो. साफ जीभ है उनकी.
मुरारी बापू के यहां आए खूब सारे भक्त लक्ष्मी के पास भी आते हैं. लक्ष्मी की स्वीकार्यता मुरारी बापू के रास्ते बढ़ रही है (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
‘कौन हैं हेड? मिस्टर सहाय? मिसेज सहाय मेरी सहेली हैं’CISF का कोई बड़ा अफसर आया है. निखिल और निमाई ने टेंट के बाहर देखा था उनको. बॉडीगार्ड्स वाले अफसर थे वो. करीब दो गाड़ियों में भरकर लोग आए थे उनके साथ. ऊंचे ओहदे वाला आदमी लक्ष्मी के सामने पैरों के पास बैठा है. फूट-फूटकर रो रहा है. कुछ बता रहा है, हमको नहीं देता सुनाई. पर लक्ष्मी का कहा साफ पहुंच रहा है-
CISF! दिल्ली में! हेड कौन हैं? सहाय? Mrs. सहाय मेरी बहुत अच्छी दोस्त हैं. 50 बार तो मेरी फ्लाइट मिस होने से बचाई है. एक बार तो मैं बस 15 मिनट पहले पहुंची. धड़ धड़ धड़ फिर भी मुझे अंदर ले जाकर बिठा दिया.
कोई डिप्टी कमांडेंट है. लक्ष्मी कहती हैं-
जेके काटे न आरी, तेके काटे तिवारी. मेरा एक्स बॉयफ्रेंड भी इसी में था. विक्की. थावे तो खबर है न धर्मेश, बापू जी को भी पता है. उसी के चक्कर में तो मैं उज्जैन गई. सब किया. कल दोपहर आना, एक से डेढ़ के बीच. आर्मी अफसर की तरह मत आना, धाड़ धाड़ करके.
वो जा रहे हैं, अगली दोपहर फिर आएंगे. लक्ष्मी कह रही हैं-
Thank you betas. I am really proud of the work you guys are doing. Thank you for serving us.
सामने दाहिनी ओर गुजरात के लोग हैं. लक्ष्मी पूछती हैं-
गरबो आवे छे?
सब गरबा कर रहे हैं. गोल घेरा. लक्ष्मी गा भी रही हैं, नाच भी रही हैं. मैं गाने की लाइन याद करने की कोशिश करती हूं. नहीं कर पाती. गरबा खत्म. लक्ष्मी की सांस चढ़ गई. वो कह रही हैं- थाकी गई.
एक अम्मा. तीन बेटियां. लक्ष्मी कहती हैं-
ये घर के मंदिर में रख देना. सोचना छोड़ दो। बेटियां ही अच्छी होती हैं. मुझसे कुछ मांगो मत. मैं जो देती हूं, खुशी से ले लो.
लड़की ने गुलाबी जैकेट पहनी है. शायद उसका पति, उससे कोई मसला हुआ है. परेशान है, रो रही है. लक्ष्मी कह रही हैं-
सम्मान इस मोर इम्पोर्टेन्ट. जो डिज़र्व नहीं करता, उसके लिए मत रो. तुम किसी ऐसे-वैसे के लिए नहीं रो सकती. Now I am going to take a selfie with you, your face needs to look good.
बाहर से शंख और ढोल की आवाज़ आती है-
क्या हो रहा है? काली पूजा. अभी इस टाइम. अरे, अभी कैसे? इस वक़्त तो नहीं होती. जो कायदा है, वैसा ही होना चाहिए. मैं बात करती हूं इनसे.
बाहर काली पूजा हुई है. उसी की आरती वाली थाल के आगे सिर झुका रही हैं लक्ष्मी (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
आरती आई. एक किन्नर आई. हाथ में आरती का थाल. दूसरी के बाल खुले हैं. वो शायद तेज की नाची है. लक्ष्मी थाल थामती हैं. सबको आरती दे रही हैं. लौ की गर्मी सबके माथे से छुआ रही हैं.
– कुड़ी की गल हेगा?
– काले रंग के कपड़े मत पहन कर रह. सब सही हो जाएगा.
– छुट्टा पैसा है किसी के पास. चिल्लर ही चाहिए. मेरा वाला पैसा मत दे देना.
– तुम चारों बाद में आना. तुम दुखी आत्मा हो. बुधवार को हवन होता है. तब आना ( चारों के माथे पर बोसा दिया)
लक्ष्मी मुझसे कहती हैं, बेटा तू कुर्सी पर बैठ जा. मैं इनकार करती हूं, नहीं यहां ठीक है. लक्ष्मी कहती हैं-
मैंने कहा बैठ जाओ तो बैठ जाओ. मैं जो कहती हूं, करना पड़ता है.
‘बुध भारी है तुम्हारा, किन्नर दान करना होगा’दिल्ली से एक ग्रुप आया है. कुछ टीन ऐज वाले भी हैं साथ. औरतें हैं, मर्द हैं. सब अंग्रेज़ी बोल रहे. अमीर लगते हैं. श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से हैं. लक्ष्मी उनको अपनी कहानी सुना रहीं. कितने अफेयर्स रहे, वो वाला बॉयफ्रेंड, लिव-इन में रहने का किस्सा, अखाड़ा बनाने की कहानी. फिर लक्ष्मी उनमें से एक को कहती हैं-
बुध भारी है तुम्हारा. किन्नर दान कर. हरा सुहाग का जोड़ा, हरा फल, हरी मिठाई, बुधवार को आ जाना.
ग्रुप के टीनऐजर्स लक्ष्मी का मुंह ताक रहे हैं. उनमें से एक गोरा लड़का. काले रंग की जैकेट. लक्ष्मी पूछती हैं, कितनी गर्लफ्रेंड्स हैं तेरी? लड़का शर्माता है. बाकी सब हंसने लगते हैं. लक्ष्मी सामने बैठे लोगों से बात कर रही हैं-
-रोहतक से आई? इब ना मानेगी छोरी. 
– ओये, वहां क्या आवाज़ हो रही? ज़रा प्यार से बात करो औरतों से. 
– खांसी आ रही? कफ़ सीरप पी लो. इंजेक्शन लगवा दूं? It would be fun. पीछे सुई लगेगी तो ऊईं ऊईं करोगे. 
– I love you. You are very cute. 
– अरे बहिनी, अरे बहिनी. 
– मेरे को वॉट्सऐप करना. बापू के साथ वाली तस्वीरें. मेरे पास बापू और अपनी अच्छी फोटो नहीं हैं. 
– कभी भी आ, तेरा ही घर है बेटा. 
– बच्चा रो रहा! क्या हुआ बेबी को, बेबी को क्या हुआ?
कोई आया है. लक्ष्मी उठकर अंदर गईं. लौटीं, हाथ में गुलाबी साड़ी लिए. नई साड़ी. बीवी को देना ये, मिलूंगी उससे भी.
अलग-अलग भक्त. अलग-अलग प्रसाद.
अलग-अलग तरह का प्रसाद मिलता है लोगों को. आमतौर पर अक्षत और एक रुपये का सिक्का. कोई खास हुआ, तो उसका प्रसाद अलग (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
फोन का वॉलपेपरउनका फोन बजता है. वीडियो कॉल है. फोन रखते वक़्त मुझे उसका वॉलपेपर दिखता है. नीला समंदर, लहरों में झाग, लहरें किनारे के बालू से टकरा रही हैं. एक लड़की आगे आती है. उसके हाथ में फोन है. वीडियो कॉल है. उस पार कुछ लोग हैं, आगे की तरफ एक लड़का है ग्रीन शर्ट में. मां, मेरे भाई का पेपर है. उसको आशीर्वाद दे दीजिए. लक्ष्मी उसका फोन लेती हैं. स्क्रीन के पार से लोग प्रणाम कर रहे हैं. लक्ष्मी कहती हैं- खुश रह. All the best beta, अच्छे से परीक्षा देना. फिर सामने बैठे शख्स से कहती हैं-
दो दिन से बहुत एक्सहॉस्टेड थी मैं. बिस्तर की दिशा बदलनी होगी. आज से मेरे बेड का सिर पूरब की तरफ होगा.
वैसे बहुत कुछ बताती हैं लोगों को, कैमरे के आगे छुपा लेती हैंमैं माहौल देख रही हूं. लक्ष्मी की पर्सनैलिटी. लोग जैसे किसी नशे में हों. मानो सम्मोहित हो गए हों. लक्ष्मी हंसती हैं, सब साथ हंसते हैं. लक्ष्मी उन्हें अपनी प्रेम कहानियां सुनाती हैं, वो मुंह फाड़कर सुनते हैं. कोई हिचक, कोई वर्जना नहीं. लक्ष्मी उन्हें फ्लाइंग किस देती हैं. उन्हें चूमती हैं, लाड़ करती हैं. सहलाती हैं, दुलारती हैं. जैसे मां लाड़ करती है. लक्ष्मी भक्तों के सामने खुद को खोल देती हैं. वो कहती हैं, मेरी ज़िंदगी खुली किताब है. मगर यही लक्ष्मी कैमरा ऑन होते ही इस किताब के कई पन्ने बंद कर लेती हैं. सिर पर पल्लू आ जाता है. बात करने में सावधानी दिखती है.
लक्ष्मी भांप लेती हैं. किसको नीचे बैठने में तकलीफ हो रही है. ऐसों को कुर्सी दी जाती है (फोटो: निमाई दास, The Lallantop)
होगी कोई वजह, एक या एक से ज्यादाक्या ये गद्दी की मजबूरी है? क्या स्वीकार किए जाने की शर्त है? या ये डर है कि यहां आए लोगों से परे जो समाज है, वो शायद इन बातों पर मुंह चढ़ाएगा? या ये लक्ष्मी की लीडरशिप जिम्मेदारी है? नहीं, मैं बस लक्ष्मी नहीं. मैं किन्नर अखाड़े की मुखिया, उसका चेहरा हूं. मैं नहीं दूंगी मौका तुम्हें, कि तुम मेरे बहाने हर किन्नर को जज करो.
आने वालों को जो चाहिए, वो उन्हें दे रही हैं लक्ष्मीएक बात तो तय है. लक्ष्मी को अटेंशन तो बहुत मिल रही हैं. वो इसे एंजॉय भी कर रही हैं. आस्था को सिर टिकाने के लिए जो रीत-रिवाज का सहारा चाहिए होता है, वो भी लोगों को बांट रही हैं. कहावत है- जे रोगिया के भावे, से वैधा फरमावे. यही कर रही हैं लक्ष्मी. कई बार मेरे दिमाग में लॉजिक कुलबुलाता है. सवाल उठता है, पढ़ी-लिखी अंग्रेजीदां लक्ष्मी. विदेशों में बोलने जाने वाली लक्ष्मी. कानून के आगे तनकर खड़ी हो जाने वाली लक्ष्मी. वो क्यों बांट रही हैं अंधविश्वास!
हमको क्या हक कि हम उन्हें जज करेंफिर मुझे एहसास होता है. ये अंधविश्वास नहीं, विश्वास है. आस्था है. आप लॉजिक के चश्मे से आस्था को नहीं तौल सकते. आप खुद की राह चुन सकते हैं. दूसरा क्या चुनता है, ये तय करने वाले आप कौन होते हैं. तब तक, जब तक वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता. लक्ष्मी में एक तरह का गर्व है. थोड़ा नखरा भी है. मगर ये सब ग़लत और सही के परे है. आपको, मुझको कोई हक़ नहीं कि हम इसें जज करें.
इंटरव्यू हो गया है. हम टेंट से बाहर आ रहे हैं. रात के साढ़े नौ बज रहे हैं. अंदर अभी भी लोग बैठे थे. बाहर भी भीड़ है. मैं जूता खोज रही हूं. वो पड़ा है कीचड़ में. खुली बारिश में गीला. भक्तों के पैरों में आकर फुटबॉल बना होगा. मैं अपनी अकड़ी पीठ से जूते की लेस बांध रही हूं. पास के किसी टेंट से भजन की आवाज़ आ रही है-
दुनिया में यूं तो हज़ारों हैं, दुनिया में यूं तो हज़ारों हैं, दुनिया में यूं तो हज़ारों हैं…
गाने का रेकॉर्ड अटक गया है शायद.

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