चेतेश्वर पुजारा ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीतने के बाद ‘अज्ञातवास’ पर गए cheteshwar pujara
चेतेश्वर पुजारा ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार मैचों की टेस्ट सीरीज में सबसे अधिक 521 रन बनाए. उन्हें इसी प्रदर्शन की बदौलत प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया.
नई दिल्ली: भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीतने के साथ ही ‘मिस्टर भरोसेमंद’ चेतेश्वर पुजारा छह महीने के ‘अज्ञातवास’ में चले गए हैं. वे अब कम से कम जुलाई-अगस्त तक इंटरनेशनल क्रिकेट में नहीं दिखेंगे. इतना ही नहीं, आईपीएल के दौरान भी पुजारा ‘रेस्ट’ ही करेंगे, क्योंकि वे क्रिकेट के इस फॉर्मेट में फिट नहीं है. वैसे, फिट तो वे विराट कोहली की टीम में भी नहीं थे. कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री की टीम ने उन्हें तीन बार अपनी टीम से बाहर किया. अब यह पुजारा का खुद पर भरोसा ही कहा जाएगा, कि वे बार-बार टीम में आते रहे और खुद को साबित करते रहे.
अगर आप भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे (India vs Australia) से पहले की खबरों, चर्चाओं को याद करेंगे, तो पाएंगे कि इसमें सबसे आगे विराट कोहली ही थे. हर कोई मान रहा था कि कोहली ऑस्ट्रेलिया में चार मैचों की टेस्ट सीरीज में सबसे अधिक रन वही बनाएंगे. लेकिन सीरीज खत्म हो चुकी और पुजारा टॉप पर हैं. आखिर चेतेश्वर पुजारा में ऐसा क्या है, जो वे बार-बार खुद पर उठने वाले सवालों को कुचल देते हैं. सीरीज खत्म हुई तो पुजारा 521 रन के साथ टॉप पर थे और विराट 282 रन के साथ तीसरे नंबर पर. जाहिर है, पुजारा ने एक बार फिर खुद को साबित किया.
बहरहाल, पुजारा के ‘अज्ञातवास’ की बात करें तो इससे क्रिकेट का दोहरापन सामने आता है. भारत जब ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीतता है तो टीम के कप्तान और कोच दोनों ही इसे विश्व कप की जीत से भी बड़ी बताते हैं. कोच शास्त्री कहते हैं कि टेस्ट, क्रिकेट का सबसे सच्चा फॉर्मेट (Truest Format) है. इस कारण यह जीत विश्व कप से भी बड़ी है. अब इसी क्रिकेट का क्रूर चेहरा देखिए. इसी ट्रू फॉर्मेट का सबसे भरोसेमंद खिलाड़ी क्रिकेट के बड़े मुकाबलों से इसलिए दूर रहेगा क्योंकि वह सच्चा टेस्ट क्रिकेटर है.
विडंबना यह भी है कि यह सच्चा क्रिकेटर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अनुबंधित खिलाड़ियों की सूची में भी टॉप ग्रेड में नहीं है. उसे वहां भी दूसरे ग्रेड में जगह मिली है. टॉप ग्रेड (A+) के क्रिकेटरों का सालाना करार 7 करोड़ रुपए का है. पुजारा वाले ग्रेड ए के खिलाड़ियों का सालाना अनुबंध 5 करोड़ रुपए का है.
अच्छी बात यह है कि पुजारा को ऐसे दोहरे पैमाने वाले क्रिकेट में लड़ने और फिट होने के लिए बचपन में ही ट्रेनिंग दी गई थी. आप लंबी-लंबी पारियां कैसे खेलते हैं? पुजारा एक इंटरव्यू में इस सवाल के जवाब में कहते हैं, ‘मेरे पिता क्रिकेटर रहे हैं. मेरे पहले कोच भी हैं. अगर मैं नेट्स पर भी आउट हो जाता, तो वे मुझे उतना ही डांटते थे, जितना किसी मैच में आउट होने पर. कहते थे, तुम अपने विरोधी को एक भी मौका नहीं दे सकते. चाहे वह नेट प्रैक्टिस ही क्यों ना हो. अगर तुम नेट्स पर आउट नहीं होगे, तभी क्रीज पर टिकोगे.’ पुजारा ने पिता की सीख को अपने भीतर इतनी गहराई से उतारा है कि वे मैदान के भीतर या बाहर कहीं भी विरोधी को मौका नहीं देते. अगर गलती हो भी गई तो उसे सुधारकर फिर मैदान पर उतर आते हैं.
30 साल के चेतेश्वर पुजारा का खेल बारीकी से देखने पर हमें एक ही क्रिकेटर याद आता है और वह है राहुल द्रविड़. चाहे मैदान पर दृढ़प्रतिज्ञ होकर खेलना हो या शालीलता. दोनों खिलाड़ी एक जैसे ही हैं. और अगर हम दोनों के खेल को आंकड़ों में परखें तो भी वे एक सिक्के के दो पहलू नजर आते हैं. कई बार तो ऐसा लगता है कि चेतेश्वर पुजारा, अपने इस सीनियर खिलाड़ियों के पदचिन्हों को छोड़कर कहीं और कदम रखना ही नहीं चाहता. इसका बेहतरीन नमूना यह है कि इन दोनों ही बल्लेबाजों ने एक बराबर पारियों में 3000, 4000, और 5000 रन पूरे किए हैं (67 मैच में 3000, 84 मैच में 4000 और 108 पारियों में 5000 रन.) एक और दिलचस्प बात. ये दोनों ही खिलाड़ी रन आउट होने और कराने के लिए भी बदनाम हैं.
चेतेश्वर पुजारा और उनके बहाने टेस्ट क्रिकेट के लिए राहत की बात यह है कि कप्तान विराट कोहली उन्हें बेशकीमती मान रहे हैं. उन्होंने सोमवार को सिडनी टेस्ट ड्रॉ होने और सीरीज जीतने के बाद कहा, ‘मैं पुजारा का खासकर जिक्र करना चाहता हूं. वह ऐसा खिलाड़ी है, जो हमेशा परिस्थितियों को स्वीकार करता है. वह बहुत अच्छा इंसान है. उनके टीम में होने पर आप आश्वस्त हो सकते हैं.’
वैसे, तो विराट कोहली ने पुजारा की तारीफ की. दूसरी ओर, सच यह भी है कि कोहली ही पुजारा की बल्लेबाजी की शैली पर सवाल उठा चुके हैं. विराट कोहली ने 2015 में पहली बार सिडनी टेस्ट में कप्तानी की. मजेदार बात यह है कि पुजारा को इसी टेस्ट से बाहर कर दिया गया था. इसके बाद उन्हें 2016 में वेस्टइंडीज दौरे पर और फिर 2018 में इंग्लैंड के खिलाफ बर्मिंघम टेस्ट से भी टीम से बाहर किया गया. इन तीनों ही मौकों पर विराट कोहली टीम के कप्तान और रवि शास्त्री टीम के कोच या मैनेजर थे. ऐसा लगता है कि क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) और टीम प्रबंधन दोनों ही टेस्ट क्रिकेटरों के प्रति अपने रुख को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हैं. और जब तक ऐसा रहेगा, तब तक चेतेश्वर पुजारा को बार-बार ‘अज्ञातवास’ पर जाते रहना होगा.
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