पद्मावत विवाद: क्या बीजेपी राजपूत वोट बैंक की अनदेखी कर पाएगी? padmavati case
बाड़मेर में रिफायनरी के उद्घाटन के दौरान मोदी ने स्थानीय वॉर हीरो दलपत सिंह और पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह की तारीफ में जमकर कसीदे पढ़े, ताकि राजपूतों को लुभाया जा सके
फिल्म ‘पद्मावत’ की रिलीज को अब जबकि, सेंसर बोर्ड और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का समर्थन मिल चुका है, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी फिल्म को हरी झंडी दे दी है. ऐसे में सवाल उठते हैं कि, क्या अब भी छह राज्यों की बीजेपी सरकारें ‘पद्मावत’ के विरोध के नाम पर देश के संविधान की अवहेलना करना जारी रखेंगी? क्या केंद्र सरकार फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे मुठ्ठी भर संगठनों को खुश रखने के लिए यूं ही कानून की अनदेखी करती रहेगी? क्या केंद्र और छह राज्यों की बीजेपी सरकारें फिल्म की रिलीज पर ऐसे ही रोक लगाए रखेंगी, ताकि राजपूत समुदाय के वोट उनकी झोली में आ जाएं?
सुप्रीम कोर्ट ने संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत' पर लगी तानाशाही रोक को हटा दिया है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला साहसिक और समयानुकूल है. इसे देश के इतिहास की एक अहम घटना माना जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी, कलात्मक, रचनात्मक आजादी और हमारे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को कायम रखा है. इस फैसले ने हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की बीजेपी सरकारों को राजनीतिक मुश्किल में डाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इन छह राज्यों की सरकारों को अब मजबूर कर दिया है कि, वह यह तय करें कि, क्या वे देश के संविधान के प्रति वफादार हैं, या वोटों की खातिर ऐसे गैरकानूनी और आत्मघाती फैसले लेती रहेंगी.
इन सरकारों को अब यह तय करना होगा कि, क्या वे भारतीय संविधान की गरिमा बनाए रख सकती हैं. इन सरकारों को यह भी साबित करना होगा कि, क्या संविधान की रक्षा के लिए वे कानून का पालन करेंगी. या फिर, यह सरकारें एक फिल्म के प्रदर्शन को रोकने की धमकी दे रहे असामाजिक तत्वों से डर कर अपनी दुम दबाकर यूं ही खामोश बैठी रहेंगी.
बीजेपी राजपूत वोटों का मोह छोड़ पाएंगी?
कुछ ही दिनों में, हमें पता चल जाएगा कि, हंगामा करने वाले संगठनों के खिलाफ लड़ाई में शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे, एम.एल. खट्टर, विजय रूपाणी, जयराम ठाकुर और त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कितना जौहर (साहस) दिखाया. अगर इन नेताओं ने फिल्म का विरोध कर रहे उपद्रवियों के खिलाफ साहस नहीं दिखाया, तो यह साबित हो जाएगा कि, यह सभी मुख्यमंत्री न सिर्फ अक्षम, कायर और रीढ़ विहीन हैं बल्कि संविधान से दगाबाजी करने वाले भी हैं.
फिल्म पद्मावत की रिलीज पर रोक लगाने वाली छह राज्यों की बीजेपी सरकारें क्या राजपूत समुदाय के वोटों का मोह छोड़ पाएंगी, इसका नमूना जल्द ही हमें राजस्थान में देखने को मिलेगा. इसलिए हमें राजस्थान पर नजर बनाए रखनी होगी.
फिल्म 'पद्मावत' पर बैन की चिंगारी राजस्थान से ही भड़की थी. राज्य में सबसे पहले स्व-घोषित राजपूतों के नेताओं ने फिल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था और रिलीज रोकने की मांग की थी. विरोध प्रदर्शन करने वाले समूहों का नेतृत्व करणी सेना ने किया. इस संगठन का नाम पश्चिमी राजस्थान की श्रद्धेय देवी 'करणी माता' पर रखा गया है. करणी सेना का प्रमुख लोकेंद्र कलवी है, जो कि एक मिलनसार और शांत स्वभाव वाला लेकिन तेज-तर्रार और मजबूत बुद्धि वाला व्यक्ति है. दरअसल करणी सेना के लिए 'पद्मावत' अहंकार का मुद्दा बन गई है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद करणी सेना के पीछे हटने की संभावना कम ही है.
सेंसर बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई हारने के बाद, अब करणी सेना धमकियों और ब्लैकमेल का सहारा ले सकती है. यह लोग फिल्म की स्क्रीनिंग करने वाले थिएटर मालिकों को डराने-धमकाने की कोशिश कर सकते हैं. करणी सेना के कार्यकर्ता दर्शकों और सिनेमाघरों के कर्मचारियों पर भी हमला कर सकते हैं.
ऐसे में, राजस्थान सरकार का यह कर्तव्य होगा कि, वह सुनिश्चित करे कि राज्य को करणी सेना नहीं चला रही है. राजस्थान सरकार पर यह भी दायित्व होगा कि, वह सुप्रीम कोर्ट के सम्मान को कायम रखे. ऐसा करने के लिए राजस्थान सरकार को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी. राजस्थान सरकार को साहस के साथ करणी सेना को आंखें तरेर कर दिखानी होंगी और उसके नेताओं के साथ सख्ती और दृढ़ता से पेश आना होगा, ताकि वे शांत हो सकें.
करणी सेना ने राजपूतों के आरक्षण के लिए आंदोलन किया था
थिएटरों और सड़कों पर हिंसा के मंसूबे रखने वाले उपद्रवियों को काबू में रखने के लिए राजस्थान सरकार को कानून-व्यवस्था की मशीनरी का बेहिचक इस्तेमाल करना होगा. अगर राजस्थान में सख्ती के साथ करणी सेना को काबू में कर लिया गया, तो फिर किसी और संगठन में इतनी जुर्रत नहीं होगी कि, वह किसी और राज्य में संविधान और कानून की अवहेलना कर सके.
इसलिए, संविधान को कायम रखने की जिम्मेदारी अब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कंधों पर आ गई है. संयोग से, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि, वसुंधरा राजे को करणी सेना और उसके उपद्रवी समर्थकों से निपटना पड़ रहा है. करीब एक दशक पहले भी, करणी सेना ने राजस्थान में राजपूतों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया था.
उस समय बीजेपी ने राजपूतों को आरक्षण की मांग का समर्थन करने से इनकार कर दिया था. जिससे चिढ़कर करणी सेना ने वसुंधरा राजे की रैलियों को बाधित करने और सड़कों पर हिंसा करने की धमकी दी थी. तब, करणी सेना की धमकी के बाद वसुंधरा राजे ने कड़े तेवर अपनाए थे और उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. लिहाजा, इतिहास गवाह है कि, वसुंधरा राजे में करणी सेना से निपटने की क्षमता भी है और साहस भी.
लेकिन समस्या यह है कि, राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राजस्थान में मिशन 2018 के तहत बीजेपी राजपूत वोट बैंक को लुभाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. 16 जनवरी को राजस्थान के बाड़मेर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रिफाइनरी का उद्घाटन किया. खास बात यह है कि, पांच साल पहले राजस्थान में तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस सरकार ने इस रिफाइनरी की नींव रखी थी. उस समय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इस रिफाइनरी का उद्घाटन किया था. दरअसल बीजेपी की इस सारी कवायद का मकसद इलाके के राजपूतों को खुश करना है.
भैरों सिंह शेखावत बीजेपी से बेहद नाराज थे
बाड़मेर में रिफायनरी के उद्घाटन के दौरान मोदी ने स्थानीय वॉर हीरो (युद्ध नायक) दलपत सिंह और पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह की तारीफ में जमकर कसीदे पढ़े, ताकि राजपूतों को लुभाया जा सके. हालांकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ राजपूत नेता जसवंत सिंह को टिकट नहीं दिया था. जिसके चलते जसवंत सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ने को मजबूर हो गए थे. जसवंत सिंह के अलावा बीजेपी ने राजस्थान में अपने एक और राजपूत नेता भैरों सिंह शेखावत की भी अनदेखी की. उपराष्ट्रपति रहे भैरों सिंह शेखावत अपनी मौत से पहले बीजेपी आलाकमान से बेहद नाराज थे. उन्होंने सक्रिय राजनीति में वापसी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन शुरू करने की धमकी तक दे डाली थी. जाहिर है, बीजेपी राजस्थान में फिलहाल 'जो बीत गई सो बात गई' की तर्ज पर राजपूतों को खुश करने की हर संभव कोशिश कर रही है.
राजस्थान में उस वक्त तक सब कुछ ठीक नजर आ रहा था, जब राजपूतों ने फिल्म ‘पद्मावत’ पर बैन लगाने की मांग की और बीजेपी सरकार ने उसे मान लिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने राजपूतों-बीजेपी की गलबहियों और खुशियों में खलल डाल दी. ऐसे में, सुविधा के इस गठबंधन में अब जल्द ही परेशानियां और मतभेद उभरना लाजमी है.
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